(क) सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
1. अहंकार का भाव न रक्खू,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ।
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ।।
रहे भावना ऐसी मेरी,
सरल-सत्य व्यवहार करूँ।
बने जहाँ तक इस जीवन में,
औरों का उपकार करूँ।।
मैत्री भाव जगत में मेरा,
सब जीवों से नित्य रहे।
दीन-दुखी जीवों पर मेरे,
उर से करुणा-स्रोत बहे।।
शब्दार्थ-अहंकार = घमण्ड; ईर्ष्या = द्वेष; करुणा-स्रोत = दया की धारा।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा भारती’ के ‘मेरी भावना’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता जुगल किशोर ‘युगवीर’ हैं।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ईश्वर से अपने लिए अच्छी भावनाओं की कामना करता है।
व्याख्या-हे ईश्वर ! कभी भी घमण्ड का भाव मेरे मन में न आये और न ही मैं किसी पर गुस्सा करूँ। दूसरों की उन्नति और विकास को देखकर मुझे प्रसन्नता हो, न कि कुढ़न।।
हे प्रभु ! मैं चाहता हूँ कि मेरी ऐसी भावना हो कि मैं सबके प्रति सरलता व सत्यता का व्यवहार करूँ और जहाँ तक सम्भव हो सके मैं अपने इस जीवन को परोपकार में लगा सकूँ, अर्थात् दूसरों की भलाई कर सकूँ। तेरे बनाये सभी जीव-जन्तुओं एवं पादपों से मेरा व्यवहार प्रतिदिन मित्रवत् हो तथा दुखी व परेशान प्राणि-मात्र के प्रति मेरे हृदय में दया की अविरल धारा बहती रहे।
2. दुर्जन-क्रूर कुमार्गरतों पर,
क्षोभ नहीं मुझको आए
साम्यभाव रक्खू मैं उन पर,
ऐसी परिणति हो जाए।।
गुणीजनों को देख हृदय में,
मेरे प्रेम उमड़ आए।
बने जहाँ तक उनकी सेवा,
करके यह मन सुख पाए।।
होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं,
द्रोह न मेरे उर आए।
गुण ग्रहण का भाव रहे नित,
दृष्टि न दोषों पर जाए।।
शब्दार्थ-दुर्जन = दुष्ट; क्रूर = कठोर; कुमार्गरतों = बुरे रास्ते पर चलने वाले क्षोभ = कष्ट; साम्यभाव = समानभाव; परिणति = बदलाव; गुणीजन = गुणवान लोग; कृतघ्न = उपकार न मानने वाला; द्रोह = वैर; उर = हृदय।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ईश्वर से अपने लिए अच्छी भावनाओं का वरदान चाहता है।
व्याख्या-हे प्रभु ! मेरी सदैव ऐसी भावना रहे कि मुझे दुष्ट, कठोर और बुरे आचरण वाले लोगों के व्यवहार पर दुःख न हो। मेरे हृदय में उनके प्रति ऐसा बदलाव हो कि मैं उनके प्रति समानता का भाव रखने लगूं।
जब मैं गुणवान लोगों को देखू तो उनके लिए मेरे हृदय में प्रेम की भावना उत्पन्न होती रहे। जहाँ तक सम्भव हो सके मैं ऐसे लोगों की तन-मन-धन और कर्म से सेवा कर मन की शान्ति अर्जित कर सकूँ।
मैं कभी भी दूसरों के किये हुए उपकार को भूलने वाला न बनूँ और मेरे मन में किसी के प्रति भी वैर-भावना पैदा न हो। दूसरों के चरित्र में से मैं उसके अन्दर छिपे गुणों को स्वीकार करता रहूँ, किन्तु उनके दोषों की ओर मेरा ध्यान कदापि न जाये। हे ईश्वर ! मेरी प्रतिदिन यही भावना रहे।
3. कोई बुरा कहे या अच्छा,
लक्ष्मी आए या जाए।
लाखों वर्षों तक जीऊँ या,
मृत्यु आज ही आ जाए।
अथवा कोई कैसा ही भय,
या लालच देने आए।
तो भी न्यायमार्ग से मेरा,
कभी न पद डिगने पाए।।
फैले प्रेम परस्पर जग में,
मोह दूर पर रहा करे।
अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं,
कोई मुख से कहा करे।।
बनकर सब युगवीर हृदय से,
देशोन्नतिरत रहा करें।
वस्तु स्वरूप विचार खुशी से,
सब दुःख संकट सहा करें।।
शब्दार्थ-न्यायमार्ग = न्याय का रास्ता; पद = पैर, पग; परस्पर = आपस में; मोह = लालच; कटुक = कड़वा; देशोन्नतिरत = देश की उन्नति में लगे।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रतिकूल अथवा अनुकूल, दोनों परिस्थितियों में धैर्य रखने की शक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है।
व्याख्या-कोई मुझे बुरा कहे अथवा कर्ण-प्रिय शब्द बोले, मेरे पास धन आए अथवा जाता रहे, चाहे मैं लाखों वर्षों तक जीता रहूँ अथवा मेरी मौत नजदीक हो अथवा मुझे कोई कैसा भी बरगलाने या लालच देने का प्रयत्न करे, तो भी हे मेरे ईश्वर ! मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कर, जिससे न्याय के पथ से मेरे कदम हटने न पाएँ।
इस दुनिया के समस्त निवासियों के मध्य आपस में प्यार बढ़े, सभी लोभ, लालच से दूर रहें तथा कोई भी अपने मुँह से । किसी के लिए भी अप्रिय, कड़वे तथा कठोर शब्द न बोले। – सभी देशवासी मन से दृढ़ संकल्पित हो युगवीर बनें और सदैव राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दें। साथ ही, सभी दुखों पीड़ाओं और संकटों को वस्तु के समान आने जाने वाला सोचकर अर्थात् उन्हें जीवन का एक अंग मानकर खुशी से सहन किया करें।
शब्दकोश
अहंकार = घमण्ड; परिणति = बदलाव या परिवर्तन; ईर्ष्या = जलन; करुणा = दया; कटु = कठोर, कड़वा; . देशोन्नति = देश की उन्नति; स्रोत = धारा, साधन, उद्गम; क्षोभ = खेद, दुःख; क्रूर = निर्दयी।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(क) हमें जीवों के प्रति किस तरह की भावना रखनी चाहिए?
उत्तर-
हमें जीवों के प्रति मित्रता व दया की भावना रखनी चाहिए।
(ख) ‘मेरी भावना’ कविता में कवि ने किन-किन पर साम्यभाव रखने की बात कही है ?
उत्तर-
इस कविता में कवि ने दुष्ट, निर्दयी व गलत रास्ते पर चलने वाले इत्यादि के प्रति साम्यभाव रखने की बात कही है। .
(ग) देशोन्नति से कवि का क्या आशय है ? कवि किस तरह की देशोन्नति में सम्मिलित होना चाहता है ?
उत्तर-
देशोन्नति से कवि का आशय-देश की उन्नति से है। कवि चाहता है कि सभी हृदय से युगवीर बनकर देश की उन्नति और विकास में सम्मिलित हों।
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मेरी भावना पाठ को लेकर कुछ विशेष लेख जो आपको बहुत कुछ सिखाएगा
मेरी भावना: एक प्रेरणादायक जीवनदर्शन
परिचय
"मेरी भावना" कविता, जुगल किशोर 'युगवीर' द्वारा रचित एक गहन प्रेरणादायक कृति है, जो जीवन में सद्गुणों को आत्मसात करने और मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती है। यह कविता न केवल व्यक्तिगत जीवन को संवारने की शिक्षा देती है, बल्कि सामाजिक समरसता और देश के उत्थान के लिए एक आदर्श दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
मुख्य भावनाएँ
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अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या से मुक्त जीवन
कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनके हृदय में कभी घमंड, क्रोध, या ईर्ष्या का स्थान न हो। दूसरों की सफलता देखकर जलन के बजाय प्रसन्नता का अनुभव हो। सरलता और सत्यता के साथ जीवन जीते हुए वे परोपकार को अपना उद्देश्य मानते हैं।
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मित्रता और करुणा का भाव
कवि सभी जीवों के प्रति मित्रता और दया की भावना बनाए रखने की कामना करते हैं। दीन-दुखी और पीड़ितों के प्रति उनके हृदय से करुणा की धारा बहती रहे। यह विचार हमें सह-अस्तित्व और समर्पण की भावना सिखाता है।
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साम्यभाव और उदार दृष्टिकोण
कवि दुर्जन, क्रूर और गलत रास्ते पर चलने वालों के प्रति भी साम्यभाव रखने की प्रेरणा देते हैं। वे गुणीजनों के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखते हुए उनकी सेवा का संकल्प करते हैं।
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न्याय और धैर्य का मार्ग
चाहे कोई बुरा कहे, परिस्थिति कैसी भी हो—धन आए या जाए, मृत्यु पास हो या दूर—कवि न्याय के मार्ग से कभी विचलित न होने की प्रेरणा देते हैं। वे कठिनाइयों और लालच को धैर्य और समर्पण से सहने की शक्ति की कामना करते हैं।
जीवों के प्रति मित्रता और दया का संदेश
कवि सभी जीवों के प्रति मित्रता और दया की भावना रखने की शिक्षा देते हैं। यह हमें पर्यावरण और जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील और सहिष्णु बनने के लिए प्रेरित करता है।
दुष्टों के प्रति साम्यभाव
कवि दुष्ट, क्रूर और कुमार्गरत व्यक्तियों के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा देते हैं। उनके अनुसार, दोषों के बजाय गुणों को स्वीकार करने की आदत हमें सच्चा इंसान बनाती है।
देशोन्नति और युगवीर बनने की प्रेरणा
कवि देश की उन्नति को सर्वोपरि मानते हैं। वे प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा करते हैं कि वह युगवीर बने और राष्ट्रहित के लिए कार्य करे। साथ ही, दुखों और कष्टों को सहते हुए राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाए।
हमारे लिए सीख
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सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना:
दूसरों की उन्नति देखकर खुश होना और दोष देखने के बजाय गुण ग्रहण करने की आदत विकसित करना।
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न्यायप्रिय बनना:
अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय के मार्ग पर अडिग रहना।
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राष्ट्र सेवा का संकल्प:
देश की उन्नति में योगदान देना और इसे अपना धर्म समझना।
निष्कर्ष
"मेरी भावना" कविता जीवन के आदर्श मूल्यों का संकलन है। यह हमें सिखाती है कि मानवता, करुणा, और न्याय जैसे गुणों को अपनाकर ही हम एक बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। कवि की भावनाएँ हमें एक नई दिशा दिखाती हैं और यह प्रेरणा देती हैं कि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर हम किस तरह से सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
इस कविता से प्रेरणा लेकर हमें चाहिए कि हम अपने आचरण और व्यवहार में इन मूल्यों को आत्मसात करें और एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ हर कोई दूसरों की भलाई के लिए कार्य करे। यही सच्ची देशोन्नति है।
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